स्वयं सेवी संस्थान (NGO) गैर सरकारी संगठन
गैर सरकारी संगठन (NGO) या अलाभकारी संगठन (NPO) व्यक्तियों, कार्यकर्ताओं, स्वयं सेवकों (वोलंटीयर्स) और सामाजिक कल्याण में जुटे लोगों का एक समूह अथवा संगठन होता है.NGO या NPO एक ऐसा सामाजिक स्वैच्छिक संगठन होता है जिसके बैनर तले सामाजिक कार्यकर्ता, व्यक्तियों का समूह, समुदाय, नागरिक, वोलंटीयर्स आदि जन सेवक समाज के कल्याण और विकास के लिए कार्य करते हैं.यदि व्यक्तियों का समूह या कोई समुदाय सामाजिक परिवर्तन पर या किसी ऐसे ही मुद्दे पर कार्य करना चाहता है या करता है तो वह भी बिना रजिस्टर्ड की हुई स्वयंसेवी संस्था (NGO) में आता है. एनजीओ रजिस्टर्ड भी हो सकती है और बिना पंजीकरण करवाए भी कोई समूह या संस्था समाज सेवा का कार्य कर सकती है. सरकार अथवा अनुदानदाता संगठनों से आर्थिक सहायता या अनुदान लेने के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया जरूरी है. अगर कोई समूह अनुदान नहीं लेना चाहे तो पंजीकरण जरुरी नहीं है.
एक रजिस्टर्ड संस्था (NGO) की अपनी अलग ही पहचान होती है. एक बार अधिकृत सरकारी रजिस्ट्रार आफिस से स्वयंसेवी संस्था का रजिस्ट्रेशन हो जाने से संस्था को सभी तरह की सहायता व वित्तीय अनुदान मिल सकता है. अपने सामाजिक व मानवीय नैतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए संस्था को सुचारु रूप से चलाने का कार्य इससे जुड़े कोई भी सदस्य कर सकते हैं. स्वयंसेवी संस्था व्यावसायिक उद्देश्यों से परे मानवीयता और सहकार की भावना पर चलने वाला एक समुदाय-समूह-संस्थान होता है जो स्वतंत्र कार्य करता है सीधा सरकारी नियंत्रण में नहीं होता है. सरकार का नियंत्रण संस्थान पर कानूनी प्रक्रिया के दायरे से होता है और संस्थान अगर अनुदान ले रही है कोई और विनिमय का कार्य कर रही है तो आयकर और अन्य विभागों का नियंत्रण संस्थान की गतिविधियों पर होता है. अगर स्वयं सेवी संस्थान सरकार से अनुदान लेती है तो उस अनुदान के आय-व्यय का लेखा जोखा और उसका कहाँ उपयोग किया जाता है इस पर सरकार का नियंत्रण रहता है.
विदेशी अनुदान से ली जाने वाली आर्थिक सहायता या राशि प्राप्त करने और उसे खर्च करने की प्रक्रिया पर भी सरकार का नियंत्रण रहता है. विदेशी अनुदान प्राप्त करने के लिए अस्थायी या स्थायी प्रमाण पत्र (FCRA) भी गृह मंत्रालय से लेना पड़ता है. विदेशी अनुदान के आय-व्यय का ब्यौरा भी गृह मंत्रालय को निर्धारित प्रारूप और प्रक्रिया में प्रस्तुत करना होता है. सभी स्वयंसेवी संस्था संगठित स्वदेशी समूहों द्वारा स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विकास कार्यों में सहयोग देने वाली प्राइवेट एजेंसी होती है. अपने नागरिकों के समूहों में स्वयंसेवी संस्था (NGO) समूहों, समुदायों, विभिन्न तरह के एसोसिएशन, क्लब जैसे लायन्स क्लब, रोटरी क्लब आदि के बैनर तले जागरुकता फैलाने और सरकारी नीतियां बनाने में महत्ती भूमिका निभाता है.
स्वयंसेवी संस्थाएं (NGOs) सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक स्तर पर पिछड़े वर्ग की उन्नति, बेहतरी व विकास के लिए कार्य करती है जिससे उनको समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके. जिससे समाज में लोगों का जीवन स्तर उच्च हो और वे अच्छे से जीवन बसर कर सके.
एक सामुदायिक समूह और संगठन की तरह स्वयंसेवी संस्था (NGO) समाज में, समुदाय में, अपने क्षेत्र में परिस्थितियों और वातावरण में सकारात्मक परिवर्तन लाने के अपने लक्ष्य और उद्देश्य को पूरा करने के लिए कुछ कार्य करती है.
स्वयंसेवी संस्थाएं (NGOs) समाज में लोगों को उनके कानून और अधिकार के हक की लड़ाई में सहयोग देती है. स्वयंसेवी संस्थाएं सरकारी संगठन, मंत्रालय, विभाग, एजेंसीज और अधिकृत कार्यालयों को सरकारी उद्देश्य, नीति-नियम, कार्यक्रम, योजना आदि पूरा करने में सहयोग करता है. जनहित में स्वयंसेवी संस्थाएं ये सारे कार्य सरकार के साथ जनभागिता नीति के तहत करती है. स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ यह सहभागिता संवैधानिक व प्रजातांत्रिक तरह से होती है. स्वयंसेवी संस्थाएं लोगो की सहभागिता के लिए जानी जाती है. विभिन्न जरुरी सामाजिक मुद्दों पर जनसहभागिता जरुरी है. सूचना का अधिकार से जुड़ा अरुणा राय व लोकपाल विधेयक से जुड़ा अन्ना हजारे का नाम का जिक्र इस बात को समझाने के लिए पर्याप्त है कि जन सहभागिता किस तरह से जन आंदोलन बनती है और उनके परिवर्तन व्यवस्था में होता है.
सरकारी-गैर सरकारी, व्यावसायिक समूह, अन्य दानदाताओं के सहयोग से स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्य चलते हैं. स्वयंसेवी संस्थाओं को आर्थिक सहयोग सदस्यों की सदस्यता फीस से, प्राइवेट डोनेशन से व संस्था के उत्पाद बिक्री से मिलता है. स्वयंसेवी संस्था परोपकारी संस्था की हैसियत से सेवा कार्य करती है तो समाज के धनीवर्ग से व सभी तरह के सेवाभावी व्यक्तियों से दवाइयां, वस्त्र, उपकरण व अन्य आवश्यक सामग्री जरूरतमंद व्यक्तियों और समुदायों से सहयोग मिल जाता है.
स्वयंसेवी संस्थाएं अलाभकारी संस्था के रूप में कार्य करती है इसलिए वे इसे बिजनेस-व्यापार-व्यवसाय के रूप में अपना माल बेचकर शुद्ध मुनाफा नहीं ले सकती. इसका तात्पर्य यह है कि संस्था संचालक एक व्यापारी की तरह शुद्ध मुनाफे का स्वयं के निजी उपयोग के लिए नहीं कर सकते. वे मुनाफे का उपयोग जनहित में, जरुरतमंदों पर, आम जनता पर, प्रोजेक्ट में निर्धारित लाभार्थियों पर और संस्था के कार्यक्षेत्र को विस्तार देने में कर सकते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ हो. कंपनी व्यवसाय या निजी कारोबार लाभकारी होता है और स्वयं सेवी संस्थान के जरिये किया जाने वाला कार्य और होने वाली आय अलाभकारी होती है अर्थात उसे निजी हित में या संस्थान के सदस्यों के मुनाफे के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इसका अपयोग सिर्फ जनहित में, योग्य और अनुदान के लिए पात्र व्यक्तियों, समूहों के लिए और जनसेवा में, पर्यावरण आदि सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय कार्यों के लिए किया जाता है और किया जाना आवश्यक है. यही आम जनहित ही स्वयं सेवी संस्थान बनाने व संचालित करने का कारण, मूल आधार और मूल लक्ष्य और उपयोग है.
स्वयंसेवी संस्था (NGO) के सारे मिशन, विजन, उद्देश्य और लक्ष्य मानवजीवन और सभ्यता के विकास के लिए होते है.
गैर सरकारी संगठन
विश्व बैंक ने एनजीओ यानी गैर सरकारी संगठनों को कुछ इस तरह से परिभाषित किया है। 'ऐसे निजी संगठन जो कुछ इस तरीके की गतिविधियों से जुड़े होते हैं जिनसे किसी की परेशानी दूर होती हो, गरीबों के हित को बढ़ावा मिलता हो, पर्यावरण को सुरक्षित रखा जाता हो, मूलभूत सामाजिक सेवाएं मुहैया कराई जाती हों या सामुदायिक विकास का जिम्मा उठाया जाता हो'। विश्व बैंक के प्रमुख दस्तावेज 'वर्किग विद एनजीओज' में विस्तारित परिभाषा के अनुसार एनजीओ किसी ऐसी संस्था को कहते हैं जो गैर लाभकारी हो और सरकार से स्वतंत्र हो।
मूलत: नैतिक मूल्यों पर आधारित ऐसी संस्थाएं पूर्ण या आंशिक रूप से दान या चंदे और स्वैच्छिक सेवाओं पर आश्रित होती हैं। पिछले दो दशक से एनजीओ क्षेत्र साल दर साल तेजी के साथ पेशेवर होता जा रहा है।
काम एक नाम अनेक: भिन्न-भिन्न स्रोतों में ऐसी संस्थाओं को अलग-अलग नामों से जाना और समझा जाता है। कहीं पर इन्हें सिविल सोसायटी आर्गनाइजेशन , कहीं पर निजी स्वैच्छिक संगठन (पीवीओज), चैरिटी, नॉन प्रॉफिट चैरिटीज, चैरिटेबल आर्गनाइजेशन तो कहीं पर इन्हें थर्ड सेक्टर आर्गनाइजेशन जैसे अन्य नामों से बुलाया जाता है।
गठन में तेजी: पिछली सदी के आठवें दशक के बाद सामाजिक सरोकार से जुड़े मसलों को एक निर्णायक मोड़ देने की पाक-साफ नीयत से ऐसे गैर सरकारी संगठनों के गठन की बाढ़ आ गई। ये संस्थाएं उस खाली स्थान को भरने के लिए आगे आने लगीं जिनको सरकारें या तो करना नहीं चाहती थीं या फिर वे कर नहीं सकती थीं। विश्व बैंक के 'वर्किंग विद एनजीओज' दस्तावेज के अनुसार पिछली सदी के आठवें दशक के मध्य में एनजीओ सेक्टर ने विकासशील और विकसित देशों में समान रूप से अप्रत्याशित वृद्धि हासिल की। एक अनुमान के मुताबिक कुल विदेशी विकास संबंधी सहायता राशि का करीब 15 फीसद से ज्यादा हिस्सा ऐसे एनजीओ की मदद से पहुंचाया जा रहा है।
सेवाभावना: इन संगठनों का एकमात्र मकसद सामाजिक सेवा भावना है। लाभ कमाना इनका मकसद नहीं होता। गैर सरकारी संगठन राजनीतिक रूप से स्वतंत्र होते हैं, लेकिन वास्तविकता में ऐसा होना बहुत दुर्लभ होता है। इसके कई कारण होते हैं। सरकारों, अन्य संस्थानों, कारोबारी और औद्योगिक घरानों के अलावा अन्य स्रोतों से लिया जाने वाला चंदा इसकी प्रमुख वजह माना जाता है।
उत्प्रेरक: गैर सरकारी संगठनों के उद्भव और विकास को तेजी कई कारणों से मिली। एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर रिचर्ड रॉबिंस ने अपनी किताब 'ग्लोबल प्रॉब्लम्स एंड द कल्चर ऑफ कैपिटालिज्म' में इन वजहों पर रोशनी डाली है।
* शीत युद्ध के खात्मे के बाद गैर सरकारी संगठन चलाना अपेक्षाकृत आसान हुआ
* बेहतर होती संचार सुविधाएं खासकर इंटरनेट जिसने एक नए वैश्विक समुदाय के सृजन में मदद की और देशों की सीमाओं से परे समान विचार वाले लोगों के बीच एक जुड़ाव पैदा किया।
* संसाधनों में बढ़ोतरी, बढ़ती पेशेवर प्रवृत्ति और गैर सरकारी संगठनों में रोजगार के अधिक और अच्छे मौके।
* अपनी विशेष क्षमता के चलते मीडिया ने वैश्विक समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक किया। इसके चलते लोगों की सरकारों या उस समस्या से निजात दिलाने वालों से अपेक्षाओं में इजाफा हुआ।
* एक व्यापक, नव उदार आर्थिक और राजनीतिक एजेंडे का अस्तित्व में आना। आर्थिक और राजनीतिक विचारधाराओं में परिवर्तन होना जिसके चलते सरकारों और सहायता एजेंसियों के अधिकारियों का समर्थन गैर सरकारी संगठनों को मिला।
भारत में एनजीओ की स्थिति: जाने-माने वकील एमएल शर्मा ने अन्ना हजारे के एनजीओ हिंद स्वराज ट्रस्ट की वित्तीय अनियमितता के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने तत्कालीन एडीशनल सोलीसीटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा से कहा कि इस मामले में सीबीआइ का इस्तेमाल करके यह पता लगाया जाए कि देश में कितने ऐसे एनजीओ काम कर रहे हैं? उनकी वित्तीय स्थिति का विवरण क्या है और क्या वे आयकर रिटर्न जमा कर रहे हैं?
600 लोगों पर एक एनजीओ: फरवरी, 2014 में सीबीआइ ने यह विवरण अदालत के सामने रखा। आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश ने अपनी जमीन पर काम करने वाले एनजीओ की संख्या के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी।
इसके बावजूद भी अन्य राच्यों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर इन संगठनों की संख्या 13 लाख पहुंच गई। इस संख्या के आधार पर न्यूनतम अनुमान पर जब पूरे देश को आंका गया तो एनजीओ की संख्या 20 लाख हुई। आपको जानकर ताच्जुब होगा कि 1.2 अरब लोगों के जिस देश में 943 लोगों पर एक पुलिस है वहां 600 लोगों पर एक एनजीओ काम कर रहा है।
प्रमुख राच्यों पर एक नजर
राच्य -- कुल एनजीओ
उत्तर प्रदेश -- 5,48,194
केरल -- 3,69,137
मध्य प्रदेश -- 1,40,000
महाराष्ट्र -- 1,07,797
गुजरात -- 75,729
विदेशी चंदा: देश में मौजूद कुल 20 लाख एनजीओ सोसायटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, ट्रस्ट एक्ट जैसे कानूनों के तहत पंजीकृत किए जाते हैं।
साल -- विदेशी चंदा पाने वाले एनजीओ -- रकम (करोड़ रुपये में)
2009-10 -- 22401 -- 10435.22
2010-11 -- 22993 -- 10343.58
2011-12 -- 21804 -- 10581.19
सर्वाधिक दानदाता देश: भारत में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों को जिन देशों ने सर्वाधिक विदेशी चंदा दिया उनके विवरण इस प्रकार हैं।
प्रमुख देशों पर एक नजर
देश -- करोड़ रुपये
अमेरिका -- 3838.23
यूके -- 1219.02
जर्मनी -- 1096.01
इटली -- 528.88
नीदरलैंड्स -- 418.37
स्वैच्छिक विकास का संगठन
पहचान
भारत हमेशा से जनतान्त्रिक मूल्यों और परम्पराओं का मुख्य वाहक रहा है| इसमें संदेह नहीं कि यह विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है| अनेकानेक बदलावों के बावजूद, समाज के अनेक स्तंभ यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत में जनतंत्र बचा हुआ है| स्वैच्छिकवाद ऐसा ही एक स्तंभ है|
पिछले दशकों के अनेक दूरगामी परिवर्तनों ने भारतीय जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया है| इसी पृष्ठभूमि में, सार्वजनिक जीवन में, और साथ ही अभिशासन की संस्थाओं के भीतर, नैतिकता का खुले रूप में क्षरण हुआ अह| बड़े पैमाने पर निर्धनता, बेरोजगारी और निरक्षरता ने इस अस्तव्यस्त और विपदापूर्ण स्थिति को और भी जटिल बना दिया है| इस स्थिति का तकाजा है कि विशेषकर वंचित तबकों की प्रगति व आम जनों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए सक्रियता से सामाजिक कार्रवाई की जाए|
इस मोड़ पर जन कल्याण के बुनियादी सिद्धांतों पर चलने वाले स्वैच्छिक विकास संगठन आम जनता के हितों की रक्षा और मानव प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं| आस्था, ज्ञान और क्षमता से युक्त ये संगठन स्वैच्छिक विकास कार्य की उपयोगिता का पहले ही इजहार कर चुके हैं और पारदर्शी और जबाबदेह शासन, सामाजिक न्याय, समता और गरिमा, अनेकता के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों को आधार बनाकर राष्ट्र-निर्माण की चुनौती का सामना कर रहे हैं|
भारत का विशाल स्वैच्छिक क्षेत्र समाज के लगभग हर हिस्से की विधतापूर्ण जरूरतों पर ध्यान देने का प्रयास कर रहा है और स्वैच्छिक संगठन अपने आप में उस विविधता के प्रतिनिधि हैं जो राष्ट्रों के समुदाय में भारत को निराला रूप प्रदान करती है| स्वैच्छिक समूहों को अलग-अलग नाम दिए जाते हैं, जैसे-जन-संगठन, जमीनी संगठन, संसाधन संगठन, मानव-अधिकार संगठन, सामाजिक कार्रवाई समूह, सहायता संगठन, नेटवर्क आदि| इन संगठनों के अलग-अलग मानदंड और कार्य सम्बन्धी नियम है, और इनमें एक बात समान है कि वे सभी दृष्टि और प्रतिबद्धता से प्रेरित हैं|
समूहों के बीच कोई ठोस विभाजक रेखा नहीं और एक ही संगठन की विभिन्न भूमिकाएँ हो सकती हैं| सभी संगठन इस बात से सहमत हैं की दृष्टि और प्रतिबद्धता की समानता पर आधारित मूलभूत मार्गदर्शी सिद्धांत विकसित करने की जरूरत है| वाणी के सदस्यों का यह दृढ़ विचार था कि एक राय पर पहुँचने के लिए धीमी, पर ठोस विकास प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए| वर्तमान दस्तावेज इसी प्रयास का परिणाम है|
अभी इस दस्तावेज में उन संगठनों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जिनका संस्थागत आधार है और जो क़ानूनी रूप से गठित हुए हैं, यानि ऐसे संगठन जो अपने कार्य की लागत जुटाते हैं और या तो अकेले या फिर एक नेटवर्क की पद्धति से क्षेत्र क्रियान्वयन एजेंसियों के साथ काम करते हैं|
स्वैच्छिक विकास
ऐसे संगठनों को स्वैच्छिक विकास संगठन कहा जाता है|
यहाँ उद्देश्य दूसरों की इस दस्तावेज की परिधि से बाहर रखना नहीं, बल्कि यह है कि शुरू में सिमित संख्या में संगठनों पर इसे लागू किया जाए, इस प्रक्रिया से सीखा जाये और फिर आवश्यक संसोधन करके समग्र और व्यापक पैमाने पर इसे लागू किया जाये तभी यह दस्तावेज समूचे स्वैच्छिक क्षेत्र को अपनी परिधि में ले पायेगा|
इसका तत्काल लक्ष्य यह है कि पहले वाणी के सदस्य इसे अपनाएँ| इसके साथ ही वाणी के नजदीकी महत्वपूर्ण नेटवर्कों से इन सिद्धांतों को स्वीकार करने हेतु आग्रह किया जायेगा|
यह नया नाम- स्वैच्छिक विकास संगठन- भारतीय सन्दर्भ में महत्वपूर्ण बन गया है| स्वैच्छिक विकास संगठनों के सम्बन्ध में स्पष्ट नीति के आभाव में प्रत्यक्ष प्रशासन धारा से बाहर के सभी संगठन तथा उद्योग/व्यवसाय एक ही श्रेणी में ला दिए गये हैं| इस प्रक्रिया में स्वैच्छिकवाद की भावना का बुरी तरह से क्षरण हुआ है| कार्य के बुनियादी मूल्यों और कार्यगत सिद्धांतों को पुनर्जीवित करना आवश्यक है और परिवर्तन लाने के लिए एक पहचान जरुरी है| इसीलिए यह नया आवश्यक है|
सांगठनिक ढांचा
परिचय
स्वैच्छिक विकास संगठन अपनी संवैधानिक शक्ति, व्यक्ति की स्वतंत्रता की अधिकार के संवैधानिक प्रावधान से प्राप्त करता है| और यह मूल रूप से जीवित व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की दृष्टि और सोच की भौतिक अभिव्यक्ति होता है|
विशेषताएँ
• उनका गठन सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध लक्ष्य के प्राप्ति के लिए, विशेषकर समाज के हाशिये के तबकों की बेहतरी के उद्देश्य से, स्वैच्छिक आधार पर किया जाता है|
• संगठन में स्वैच्छिक सहभागिता का तत्व हो सकता है (उदहारण एक लिए बोर्ड के सदस्यों की ओर से) किन्तु जरुरी नहीं कि वे पूरी तरह से या मुख्यतः स्वैच्छिक श्रम पर निर्भर हों|
• ये संगठन उनके निजी लाभ या फायदे के लिए(राजनितिक और आर्थिक फायदे के लिए) नहीं होते जो लोग इन संगठनों का कामकाज देखते हैं, हालाँकि
क) उनमें वेतनभोगी कमचारी हो सकते हैं
ख) संगठन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए वे आय प्राप्त करने वाली गतिविधियां भी चला सकते हैं ताकि संगठन को टिकाऊ ढंग से और दक्षता से चला सकें|
• उनका काम किन्हीं मूल्यों पर आधारित होता है जैसे सार्वजानिक हित सेवा, पारदर्शिता, सहभागिता तथा जवाबदेही| वे निम्नलिखित कार्यों के लिए अपने लक्ष्य की दिशा में काम करते हैं|
क) उन अधिकारहीन लोगों की हालत में सुधार लाने के लिए जो अपनी क्षमताओं का उपयोग नहीं कर पाते और समाज अपने पूर्ण अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते|
ख) ऐसे सरोकारों और मसलों पर काम करते हैं जो जनता या सम्पूर्ण समाज के कल्याण, स्थितियों और भविष्य के लिए घातक या नुसानदेह होते हैं|
• ये संगठन स्वैच्छिक सामाजिक विकास कार्य के मूल्यों से समझौता किये बिना निधिधान या कोष भी प्राप्त कर सकते हैं पर वे निधिदान के आधार पर चलने वाले संगठन नहीं होते|
दृष्टि और मिशन
• संगठन को अपनी विजन और मिशन के सम्बन्ध में एक स्पष्ट रूप से लिखित वक्तव्य अपनाना चाहिए तथा समय-समय पर उसकी समीक्षा करते रहनी चाहिए|
• संगठन को इस सम्बन्ध में एक स्पष्ट वक्तव्य अपनाना चाहिए जो यह बताये कि वह किन समूहों को लाभ पहुँचाना चाहता है और यह कार्य वह किस प्रकार करना चाहिए है तथा वक्तव्य की नियमित रूप से समीक्षा करनी चाहिए|
अभिशासन
• बोर्ड के सदस्य अपनाये गए क़ानूनी ढांचे के प्रावधानों के अनुसार नामित भी हो सकते हैं और निर्वाचित भी|
• बोर्ड उत्तरदायित्व अन्य लोगों को (उदाहरण के लिए प्रबंधन समिति या यहाँ तक की वेतनभोगी कर्मचारियों को) हस्तांतरित कर सकता है, पर संगठन के सभी पहलुओं पर अभिशासन की अंतिम जिम्मेदारी उसी की होनी चाहिए| इनमें निम्नलिखित उत्तरदायित्व शामिल होंगे|
क) संगठन की दृष्टि, सत्यनिष्ठा, संगठन के लक्ष्यों और नीतियों का रक्षा करना, यह सुनिश्चित करना कि बाहर के या भीतर के निहित स्वार्थी तत्व संगठन की पहचान, सत्यनिष्ठा, पद्धितियों तथा गतिविधियों को विकृत न करें, उन पर अपना नियंत्रण स्थापित न कर दें उन्हें भ्रष्ट न बना दें|
ख) यह सुनिश्चित करना कि संगठन में नियोजन, कार्य-संचालन, प्रशासन, मूल्यांकन और रिपोर्टिंग का उच्च स्तर बना रहे|
ग) यह सुनिश्चित करना कि आवश्यक क़ानूनी औपचारिकतायें पूरी हों h
• बोर्ड के सदस्य के कानूनी ढांचे के अनुसार आजीवन सदस्य भी हो सकते हैं और एक निश्चित अवधि के लिए भी सदस्य हो सकते हैं| बोर्ड का कोई सदस्य पांच से अधिक स्वैच्छिक विकास संगठनों के बोर्ड में नहीं होना चाहिए|
• बोर्ड का कार्यचालन जनतान्त्रिक होना चाहिए जिसका अन्य बातों के साथ-साथ, निम्न अर्थ होगा:
क) बोर्ड पर किसी एक समूह (जैसे एक परिवार के सदस्यों का एकाधिकार नहीं होना चाहिए|
ख) बोर्ड में पहचाने हुए व्यक्ति होने चाहिए और संगठन के बाहर से कोई पदेन सदस्य नहीं बनाया जाना चाहिए|
ग) संगठन के विधान/नियमों में निर्णय की पारदर्शी प्रक्रिया तथा पदाधिकारियों व बोर्ड के सदस्यों के चुनाव की व्यवस्था होनी चाहिए|
मूल्य सम्बन्धी ढांचा
परिचय
स्वैच्छिक विकास संगठन के आधारभूत मूल्य कल्याण की, खासकर हाशिये पर खड़े तबकों की भलाई के लिए कार्य की, इच्छा पर आधारित होने चाहिए:
क) उस जनता के अधिकारों, संस्कृति और गरिमा के लिए सम्मान जिसके बीच संगठन काम रहा है|
ख) यह सुनिश्चित करना है कि संगठन की सत्यनिष्ठा, लक्ष्य, जनादेश और गतिविधियों को कोई बाहरी या भीतरी निहित स्वार्थी तत्व विकृत या नष्ट न करें या भ्रष्ट न बना दें|
ग) निजी और सांगठनिक, दोनों स्तरों पर ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के उच्च मानदंडों को बनाएं रखना|
संगठन की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार होनी चाहिए
क) वह जाति, धर्म या सम्प्रदाय से निरपेक्ष होकर मानव जाति की समानता और एकता में विश्वास करता हो,
ख) वह किसी राजनितिक दल से सम्बद्ध न हो|
ग) वह गरिमा के साथ स्त्री-पुरुष समानता और न्याय के लिए काम करे|
घ) वह महिलाओं और पुरुषों के स्वतंत्र और नवोन्मेषी चिंतन को प्रोत्साहित करे, अपने कर्मचारियों और अपने कार्य के अंतर्गत आने वाले व उससे प्रभावित होने वालों लोगों के अधिकारों, संस्कृति और गरिमा के प्रति सम्मान की भावना रखता हो|
ड.) सभी मानव प्राणियों के अधिकारों, संस्कृति और गरिमा के प्रति सम्मान की भावना रखता हो|
च) वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद तथा जाँच-पड़ताल व सुधार की भावना को प्रोन्नत करे|
छ) व्यक्तिगत और सामूहिक क्रियाकलाप के समस्त क्षेत्रों में श्रेष्ठता हासिल करने का प्रयास करे|
संगठन के तीन समान मूल्यों को आगे बढ़ाना चाहिए
क) प्रमाणिकता: जिन सिद्धांतों और व्यवहार को आप उत्तम समझते हैं, उन्हें अपनाना और स्वीकार करना|
ख) खुलापन:आम लोगों और सदस्यों को लेकर काम करते समय|
ग) लाभार्थियों की सहभागिता:कार्यक्रम के सभी चरणों में, जैसे समस्या की पहचान करने, कार्यक्रम तैयार करने,
उसका क्रियान्वयन तथा मूल्याकंन करने में लाभार्थियों की सक्रिय सहभागिता को प्रोत्साहित करना|
संगठन को दो बुनियादी मूल्यों को समर्थन देना चाहिए
क) न्याय और समानता:संसाधनों, सम्पदा और अधिकारों के वितरण में तथा विकास सम्बन्धी निवेश प्रत्येक नागरिक को उपलब्ध कराने में निष्पक्षता बरतना|
ख) टिकाऊपन और सशक्तिकरण: ऐसे सकारात्मक सामाजिक विकास का कार्य करना, उसे सुगम बनाना और आगे बढ़ाना जिसमें समुदायों/साझेदारों/लाभार्थियों का इस तरह से सशक्तिकरण हो कि वे जीवन-स्थितियों पर नियंत्रण हासिल कर सकें और सम्मानपूर्ण, अधिक न्यायपूर्ण, समानतापूर्ण और मानवीय विकास की प्रक्रिया को टिकाऊ बना सकें|
गैर-सरकारी संगठनों का संचालन तथा प्रबंधन
परिचय
इस अध्याय में बताया गया है की गैर-सरकारी संगठनों को किस प्रकार संचालित तथा प्रबधित किया जाता है| इससे सम्बन्धित अनेक मसलों पर इस अध्याय में चर्चा की गई है जिनमें जबाबदेही, प्रबंधन, मानव संसाधन विकास/ प्रशिक्षण, मूल्यांकन और मॉनिटरिंग, सूचना, नेट्वर्किंग तथा सहमेल-निर्माण शामिल हैं|
गैर-सरकारी संगठनों की जबावदेही
उत्तर और दक्षिण दोनों गैर-सरकारी संगठनों के सामने अपनी जबाबदेही तथा प्रतिनिधिकता के सवालों को हल करने को चुनौती है| इस सम्बन्ध में दो प्रमुख सवाल पूछे जा रहे हैं:
• गैर-सरकारी संगठन किसके प्रति जबावदेही है?
• वे किनका या +किसका प्रतिनिधित्व करते हैं?
इन सवालों को लेकर चली बहस इधर इसलिए भी तेज हुई है क्योंकि उनके कार्य-क्षेत्र का विस्तार हुआ है तथा उनकी संरचनाओं में नियंत्रण की निजी व सहभागी दोनों रूप, यानी निगमित और अनिगमित इकाइयों के विविध रूप शामिल हो गए हैं|
शुरू में तो ऐसा लगता है जैसे इन सवालों के जवाब बहुत सरल हैं| एक निगमित गैर-सरकारी संगठन पर बोर्ड ऑफ़ मैनेजमेंट या न्यासियों का नियंत्रण होता है और इस तरह वह उन्हीं के प्रति जबाबदेह होता है| इन लोगों को संगठन से कोई वित्तीय लाभ प्राप्त नहीं होते और वे एस अर्थ में स्वतंत्र होते हैं कि उनका उस तरह का भी कोई निहित स्वार्थ या हित नहीं होता जो संगठन के कमर्चारियों या लाभार्थियों को हो सकता है| सहभागी गैर-सरकारी संगठन मो बोर्ड का चुनाव सदस्यों द्वारा किया जाता है| इस प्रकार संगठन सचमुच जनतान्त्रिक तथा अपने सदस्यों के प्रति जबाबदेही होता है|
आम तौर पर गैर-सरकारी संगठन पंजीकरण, नियमन आदि की प्रक्रियाओं के माध्यम से व्यापक जनगण के प्रति जबाबदेही होते हैं| कोषदाताओं के प्रति भी रिपोर्टिंग के माध्यम से उत्तरदायी होते हैं|
सीमांत तथा अधिकारहीन लोगों की बीच काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन अपने को इन लोगों के हितों के प्रतिनिधि के रूप में देखते हैं| जो गैर-सरकारी संगठन साधनहीन के किसी खास पक्ष पर काम करते हैं यह समूचे समाज को प्रभावित करने वाले मसले पर काम करते हैं, वे किसी विशिष्ट जन-समूह के प्रतिनधि की बजाए एक तरह के ध्येय के प्रतिनिधि के रूप में अपने को देखते हैं| दोनों ही मामलों में प्रतिनिधित्व वहीँ मजबूत होगा जहाँ गैर-सरकारी संगठन का ढांचा निजी होने की बजाए सहभागी होगा| पर गैर-सरकारी संगठनों की जवाबदेही और प्रतिनिधिकता के सवाल इससे कहीं अधिक जटिल है|
यह इतना सरल नहीं है, यह बात उक्त परिचर्चा के विशिष्ट पहलुओं में निहित है| ऐसा भी हो सकता है की निजी गैर-सरकारी संगठन जिस बोर्ड द्वारा नियत्रित किये जाते हों वह मात्र रबड़ की मोहर हो तथा वास्तव में कमचारी संगठन को नियंत्रित करते हों| इस तरह निजी संगठन, जिनमें सहभागी संगठनों जैसी जनतांत्रिक जवाबदेही नहीं होती, वास्तव मी किसी के प्रति नहीं, पर अपने प्रति जवाबदेही हो सकते हैं| निजी गैर-सरकारी संगठनों को कुछ लोगों द्वारा जनता या ध्येय का प्रतिनिधित्व करने की आड़ में अपने व्यक्तिगत व राजनितिक आकांक्षाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है| कई ऐसे संगठन जो सहभागी संगठन होने का दावा करते है, गहरी छानबीन के बाद “सांकेतिक” सदस्यता वाले संगठन पाए गए और इस तरह वास्विकता में उनपर निजी नियंत्रण पाया गया तथा उनका धोखेबाज उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया था|
जिस तरह मुट्ठीभर धोखेबाज गैर-सरकारी संगठन बहुसंख्यक गैर-सरकारी संगठनों की निष्ठा व ईमानदारी पर बिना बात का संदेह पैदा कर सकते हैं ठीक उसी तरह थोड़े से ऐसे संगठन भी बहुसंख्यक संगठनों पर ऐसे लोगों का नियंत्रण होता है जो सच्ची व्यक्तिगत प्रतिबद्धता और सरोकार से उत्प्रेरित होते हैं और ईमानदारी व निष्ठा के उच्च मानदंड स्थापित करते हुए काम करते हैं|
गैर-सरकारी संगठन अनेक तरीकों से अपने अभिशासन तथा संचालन की गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं| बहुत-से गैर-सरकारी संगठन पहले ही इस तरह के सुधारों की जरुरत महसूस कर चुके हैं| इस तरह के अनेक संकेत मिले हैं इस तरह के सुधार किये जा रहे हैं, इन परिवर्तनों से उठे मसलों और बहसें चल रही हैं| पर जिस वातावरण में गैर-सरकारी संगठन काम करते हैं, उसमें परिवर्तन करने से इन लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता मिलेगी|
गैर-सरकारी संगठनों के अभिशासन तथा संचालन में सुधार
गैर-सरकारी संगठन अपने अभिशासन और संचालन निम्नलिखित तरीकों से सुधार ला रहे हैं:
• अपने मिशन, मूल्यों तथा लक्ष्यों को साफ-साफ बताना और यह सुनिश्चित करना कि उनकी रणनीतियाँ आर कार्यचालन हर समय इन्हीं के अतर्गत हों,
• बेहतर प्रबंधकीय प्रक्रियाएं, साथ ही वित्तीय प्रबंध, लेखा और बजटिंग प्रणालियाँ|
• बेहतर मानव संसाधन विकास और संगठन के भीतर प्रबंधकों, प्रशासकों, परियोजना कर्मियों, बोर्ड सदस्यों, लाभार्थियों, सदस्यों व स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण|
• यह सुनिश्चित करने की बेहतर क्रिया-विधियाँ कि महिलाओं और पुरुषों को सदस्यों से लेकर नेताओं तक संगठन के सभी स्तरों पर प्रभावशाली रूप में भाग लेने का अवसर मिले|
• संगठन अरु उसकी परियोजनाओं, सेवाओं और क्रियाकलापों की मॉनिटरिंग, मूल्यांकन तथा समीक्षा के लिए बेहतर साधन|
• गैर-सरकारी संगठनों द्वारा गैर-सरकारी संगठनों के लिए बेहतर सूचना सम्बन्धी व्यवस्था|
• गैर-सरकारी संगठनों के लिए बेहतर नेटवर्किंग और सहमेल-निर्माण
प्रबंधन
गैर-सरकारी संगठनों में काम काफी प्रयास की अपेक्षा रखता है| परम्परागत रूप से इनकी ओर वे लोग खींचते हैं जिनके उच्च आदर्श होते हैं जिनमें असीम उर्जा, रचनात्मकता, प्रतिबद्धता और लचकीलापन होता है| इस क्षेत्र में कार्यकर्त्ता तथा नेतृत्व के स्तर पर महिलाओं की सहभागिता का स्तर काफी उच्च है| बेशक, जमाईका जैसे कुछ देशों में गैर-सरकारी संगठनों के नेतृत्व में महिलाओं का प्रतिनिधित्व है| हाल में गैर-सरकारी संगठनों की गतिविधियों में जो उभार देखने में आया है वह परिणामत्मक ही नहीं, गुणात्मक भी है| जैसा कि हम कह आये हैं, अब गैर-सरकारी संगठन काफी बड़ी और जटिल इकाईयां हैं जो अपने कार्यक्रम खुद चलाती हैं तथा साथ ही सरकारें व अन्य संगठन उन्हें सार्वजानिक सेवाएं प्रदान करने का काम सौंपते हैं| वे साथ-साथ अनेक गतिविधियाँ चला सकते हैं- सेवा प्रदान करने से लेकर एडवोकेसी संसाधनों से अपने काम के लिए कोष प्राप्त करने का प्रयास भी करते हैं तथा इन कोषों का अत्यंत प्रभावकारी और दक्षतापूर्ण ढंग से उपयोग करते हैं| वे अपने कार्य की लगातार समीक्षा, मॉनिटरिंग और नियोजन करते रहते हैं| उन्हें वेतनभोगी कर्मचारियों, बोर्ड सदस्यों, कार्यकर्ताओं, सदस्यों और लाभार्थियों के दल की रचनात्मक उर्जाओं को जुटाने के योग्य होना होता है| यह आवश्यक है कि एक ओर वे उत्प्रेरित भी करें और दूसरी ओर प्रबंधन कार्य भी करें| सहभागी गैर-सरकारी संगठनों में तो प्रबंधकों के लिए भी यह जानना जरुरी है कि लोगों के साथ किस प्रकार कार्य करना है| बहुत से गैर-सरकारी संगठन बाहरी स्रोतों के कोषों पर निर्भर होने के कारण असुरक्षित स्थितियों में कार्य करते हैं|
इस सबका अर्थ यह है कि गैर-सरकारी संगठनों के प्रबंधकों को एक बेमिसाल किस्म के पुरुष और महिलाएँ होना पड़ता है| इस बात को स्वीकार किया जाता है कि:
इन बेमिसाल किस्म के लोगों के निजी गुणों के साथ-साथ ऐसा ज्ञान व दक्षताएं आवश्यक है जो गैर-सरकारी संगठनों के कार्यों, प्रावधानों, लक्ष्यों समूहों आदि के लिए तथा समूचे संगठन के प्रबंधन के कार्यों के लिए प्रासंगिक हों| गैर-सरकारी संगठनों के प्रबंधकों के निजी गुण ही संगठन के कार्य और विकास के लिए प्रर्याप्त नहीं होते| दूसरे शब्दों में:
गैर-सरकारी संगठनों में दक्षतापूर्ण और प्रभावशाली प्रबंध-अकरी और वित्तीय प्रणालियों आवश्यक हैं|
मानव संसाधन विकास और प्रशिक्षण
गैर-सरकारी संगठनों का कार्य उससे खिन अधिक कठिन और दुष्कर हैं जितना आम तौर पर माना जाता है| निजी और सार्वजनिक क्षेत्र से इन संगठनों में आने वाले प्रबंधकों और कर्मचारियों का भी यही कहना है| गैर-सरकारी संगठन अक्सर ऐसी परियोजनाएं हाथ में लेती हैं जो सिमित संसाधनों वाली, पर व्यापक और जटिल होती हैं| फिर भी गैर-सरकारी संगठनों के बारे में यह मिथ्या धारण फैली है कि गैर-सरकारी संगठनों का कार्य विशेष कठिन नहीं है|
अब गैर-सरकारी संगठनों के प्रबंधकों के प्रशिक्षण को अधिकाधिक रूप से विशिष्ट कार्य माना जा रहा है| कुछ देशों में तो इस कार्य के लिए एजेंसियों खुल गई हैं| अक्सर ये एजेंसियाँ भी गैर-सरकारी संगठन ही होती है| अब अधिकाधिक रूप से बोर्डों, सदस्यों, कार्यकर्ताओं और लाभार्थियों के विशिष्ट मानव संसाधन विकास और प्रशिक्षण की जरुरत महसूस की जा रही है और इस दिशा में कार्य किया जा रहा है| यह इस मान्यता पर आधारित है कि एक प्रशिक्षित और प्रभावशाली बोर्ड का होना उतना ही आवश्यक है जितना योग्य व सक्षम लाभार्थियों का होना| भलीभांति प्रशिक्षित और जानकारी रखने वाले बोर्ड अपने कर्मचारियों पर अपेक्षाकृत कम निर्भर होते हों और वे कर्मचारियों को समुचित रूप से जवाबदेही बना सकते हैं|
गैर-सरकारी संगठनों द्वारा की गई इस मानव संसाधन विकास/प्रशिक्षण सम्बन्धी पहलकदमियों में से कुछ अन्तर्राष्ट्रीय रुझान वाली पहलकदमियां हैं| कुछ अन्य संगठन गैर-सरकारी संगठनों को शोध व परामर्श सेवाएं प्रदान करते हैं और साथ ही उनके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाते हैं| इसके आलावा, अब अधिकाधिक गैर-सरकारी संगठन प्रशिक्षण पर समय और संसाधन खर्च कर रहे हैं| कोषदाता संगठन भी यह कार्य कर रहे हैं| उनकी पहल और सहायता व भागीदारी से अनेक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएं जा रहे हैं| पर इस सबके बाबजूद अक्सर ही यह विचार व्यक्त किया जाता है कि अभी भी गैर-सरकारी संगठन और उनके कोषदाता इस कार्य पर बहुत कम निवेश कर रहे हैं|
अन्य क्षेत्रों की तरह गैर-सरकारी संगठनों में भी मानव संसाधन विकास की शुरुआत सही योग्यता और प्रतिभा वाले कर्मचारियों को ओनी ओर आकर्षित करने से होती है| इसका अर्थ यह भी है कि वे उचित वेतन और सेवा-स्थितियां प्रदान कर पाने में सक्षम हैं| गैर-सरकारी संगठनों में कार्यरत बहुत-से लोगों का मानना है कि उनमें कार्य या नौकरी की असुरक्षा एक प्रमुख समस्या है| गैर-सरकारी क्षेत्र नौकरी की असुरक्षा महिलाओं और पुरुषों को सदैव एक ही तरीके से प्रभावित नहीं करती| बहुत-से देशों में श्रम शक्ति अध्ययन बताते हैं कि कम वेतन वाले सेवा क्षेत्र में महिलाओं की संख्या अधिक है और इसके अतर्गत बहुत-से गैर-सरकारी संगठनों में भी आते हैं| यह एक ऐसा कारक हो सकता है जो गैर-सरकारी क्षेत्र से उन महिलाओं की अधिक संख्या को स्पष्ट करता है जो आम तौर पर कल्याण के के क्षेत्र में आती है|
जहाँ गैर-सरकारी संगठनों का सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने काम दिया गया है वहाँ भी नौकरी की असुरक्षा की स्थिति बनी हुई है| ऐसा इस कारण है कि ऐसी सेवाएं प्रदान करने के रुझान के साथ-साथ सार्वजनिक कार्यक्रमों में बाजार अर्थतंत्र को लागू करने का रुझान भी अक्सर दिखाई देता है| इसका अर्थ यह है कि अनुबंध प्राप्त करने के लिए गैर-सरकारी संगठन एक-दूसरे से और यहाँ तक कि निजी संगठनों से प्रतिद्वंदिता करते हैं| अनेक देशों में ऐसे रुझान काफी आगे तक बढ़ चुके हैं| इसके चलते इस मुद्दे तक ही सिमित नहीं है| बहुत-से गैर-सरकारी संगठन अब यह सवाल उठाने लगे हैं कि क्या मानवीय जरूरतों, मसलों और समस्याओं को ऐसे “बाजार” के रूप में देखा जाना चाहिए जिसके भीतर प्रतिद्वंदिता होती है| गैर-सरकारी संगठनों में मानव संसाधन विकास के इस पहलू में कोषदाता और सेवाएँ प्रदान करने वाली संस्थाएं प्रमुख भूमिकाएं अदा करती हैं|
गैर-सरकारी संगठनों के कर्मचारियों को उचित वेतन के सवाल पर एक अन्य बहस भी चली है जो गैर-सरकारी संगठनों और उनके कर्मचारियों के आम्र तौर पर “पेशेवर” होने के संबध में है| एक विचार यह है कि उन संगठनों के कर्मचारियों को अन्य क्षेत्रों के कर्मचारियों जितना ही वेतन मिलना चाहिए| दूसरे विचार के अनुसार गैर-सरकारी संगठनों के कर्मचारी निःस्वार्थ कम वेतन वाले समर्पित शौकिया कार्यकर्ता होते हैं, न कि निपुण पेशेवर लोग| निःसंदेह ऐसे गैर-सरकारी संगठन भी हैं जो अतिवादी नजरिया अपनाते हैं:
“(गैर-सरकारी संगठन) अब एक ऐसा उद्योग है जिसमें काफी पैसा बनाया जा सकता है| (राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ‘
अ’) का निदेशक (प्रति वर्ष) 75,000 अमरीकी डालर का वेतन पाटा है| (राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन
‘ब”) का वेतन उच्च सरकारी अधिकारियों के बराबर है| (वह) कल्याण क्षेत्र में अभिजन है जबकि (ऐसे) नेता सार्वजनिक तौर पर निर्धारित की भर्त्सना करते हैं—“
यह एक बड़ी पेचिदा बहस है| इसमें नियंत्रण, जवाबदेही और प्रतिनिधित्व के सवाल भी शामिल हैं जिन पर हमने ऊपर विचार किया है:
“कई स्वैछिक संगठन सामान्यतः केन्द्रीय सत्ता वाले हो गए हैं| उनके निदेशक निरंकुश बन गए हैं और वे जनतान्त्रिक प्रक्रिया के अनुसार नहीं चलते जिन लोगों के साथ काम करते हैं उनके साथ उनकी पहचान न के बराबर है—यह सच्चे जन संगठनों में जो होता है, उसका ठीक उल्टा है—लोगों के लिए गैर-सरकारी संगठन—
दलाल—बन गये हैं, वे नये ठेकेदार हैं जिन्होंने उन भूस्वामियों और सूदखोरों की जगह ले ली है—जिन्हें लोग अक्सर शोषक तथा लुटेरे मानते हैं|
इसलिए गैर-सरकारी संगठन एक ओर तो व्यावसायिक होने और समुचित वेतन देकर तथा कर्मचारियों विकास में निवेश करके व्यावसायिकता का यह स्तर हासिल करने का प्रयास करते हैं और दूसरी ओर प्रभावशाली व सक्षम होने के लिए अपने परम्परागत मूल्यों व क्षमता को बनाये रखते हैं और इन दोनों स्थितियों के बीच अंतर करना कठिन है| यह रास्ता कोई सरल रास्ता नहीं है गैर-सरकारी संगठनों क क्षेत्र समाज में अन्य क्षेत्रों के रुझानों, श्रम बाजार की ताकतों तथा व्यक्तिवाद की ओर ले जाने वाले सामाजिक रुझानों से अपरिहार्य रूप से प्रभावित होता है| कुछ हद तक गैर-सरकारी संगठनों को इन रुझानों के बीच काम करना होता है और इनसे उनका प्रभावित होना अपरिहार्य है| किन्तु गैर-सरकारी संगठनों उन मूल्यों और निःस्वार्थ लक्ष्यों को ध्यान में रखना होगा जो उनकी प्रेरक शक्ति है और कार्य के सभी पहलुओं में उन्हें अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं| ये मूल्य उन समाजों में आवश्यक प्रति-बल है जहाँ स्वार्थपूर्ण व्यक्तिवाद पराकाष्ठा पर पहुँच चूका है| गैर-सरकारी संगठन इस तथ्य को समझ रहे हैं|
समीक्षा, मॉनिटरिंग तथा मूल्यांकन
गैर-सरकारी संगठनों की परिभाषा के अनुसार वे ऐसे संगठन हैं जो लगातार बदलते और विकसित होते रहते हैं| इस प्रकार मॉनिटरिंग और मूल्यांकन सम्बन्धी कार्य उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हीं के जरिये परिवर्तन और विकास को निर्देशित किया जा सकता है| मॉनिटरिंग और मूल्यांकन संचित अनुभव और विशेषज्ञता को आत्मसात करने के बहुमूल्य तरीके हैं| जब संगठन के भीतर या बाहर तीव्र परिवर्तन होंते हैं तो अनुभव और विशेषज्ञता आराम से लुप्त हो जाती हैं|
इसके अतिरिक्त, बहुत से गैर-सरकारी संगठन इस बात को समझ चुके हैं कि समय-समय पर अपना स्वयं का मूल्यांकन से कहीं बेहतर है| इस प्रकार गैर-सरकारी संगठन अब लगातार मॉनिटरिंग और नियमित मूल्यांकन के लिए स्वयं अपनी क्रियाविधियों द्वारा अपने कार्य को बढ़ाने की जरुरत को समझ रहे हैं| अधिकाधिक गैर-सरकारी संगठन विशेष परियोजनाओं और कार्यक्रमों के संदर्भ में ऐसा कर रहे हैं| अब सम्पूर्ण संगठन की बड़ी-बड़ी समीक्षाएं और मूल्यांकन कम होते जा रहे हैं, पर ऐसा अक्सर होता है| | मॉनिटरिंग और मूल्यांकन से सम्बन्धी साहित्य बढ़ता जा रहा है| कुछ संगठन ऐसे बनाये गए हैं जो गैर-सरकारी संगठनों को मूल्यांकन तथा समीक्षा में मदद करते हैं| इनमें से कुछ राष्ट्रीय हैं और कुछ अन्तर्राष्ट्रीय| इनमें ब्रिटेन की चेरेटी एवेल्युएशन सर्विस, भारत की दि सोसाइटी फॉर पार्टीसिपेटरी रिसर्च एन एशिया (प्रिय) और जिम्बाब्वे की एमडबल्यूईएनजीओ हैं|
सूचना
विभिन्न देशों में गैर-सरकारी संगठनों द्वारा या उनके बारे में उपलब्ध सुचना की गुणवत्ता और विस्तार अलग-अलग है| जिनका सामान्य अर्थ यह है कि गैर-सरकारी संगठनों को अपने कार्य के बारे में सूचना उपलब्ध करानी चाहिए| कभी-कभी गैर-सरकारी संगठनों से कानून के तहत वित्तीय सूचना मांगी जाती है| सूचना के प्रावधानों के लिए कई बार ऐसे संसाधन जरुरी होते हैं जिन तक बहुत से गैर-सरकारी संगठनों की पहुँच नहीं होती इसलिए गैर-सरकारी संगठनों और उनके कार्य के बारे में सूचना का आभाव रहा है| इसके फलस्वरूप:
• गैर-सरकारी संगठनों को जानबूझकर अपने कार्य को गोपनीय रखने के आरोप का सामना करना पड़ सकता है|
• अचेतन रूप से गैर-सरकारी संगठन सूचना नहीं देते और प्रकाशित करने के महत्व को नहीं समझते |
यह कोई स्वस्थ प्रवृति नहीं है और बहुत से संगठन अब इस बात को समझ रहे हैं| किन्तु इस क्षेत्र मने गैर-सरकारी संगठनों को दूसरे के समर्थन व सहायता तथा समझदारी की जरूरत होती है| जैसे कि कहा जा चूका है सुचना के लिए संसाधन आवश्यक है| अतः कोषदाता को भी यह बात समझनी चाहिए| प्रशिक्षण, मॉनिटरिंग, मूल्यांकन आदि जैसी सुचना आवश्यक है| गैर-सरकारी संगठनों के कार्य में सुधार के अन्य पहलुओं की तरह अतिरिक्त संसाधन प्राप्त होने से दीर्घावधि में लागत-प्रभावकारिता बढ़ेगी| इस तरह के खर्चे को अनावश्यक खर्चा मानना गलती होती होगी| गैर-सरकारी संगठनों की डायरेक्टरियाँ प्रकाशित करना जनता तक सूचनाएँ पहुँचाने के एक व्यावहारिक तरीका हो सकता है| इस तरह के प्रकाशनों में गैर-सरकारी संगठनों, सरकारी मंत्रालयों, एजेंसियों, कोषदाताओं, आदि के बारे में जानकारी दी जा सकती है| देश के आकार तथा गैर-सरकारी संगठनों के विस्तार को देखते हुए इस तरह की डायरेक्टरियाँ, राष्ट्रीय, स्थानीय या क्षेत्रीय आधार पर प्रकाशित की जा सकती है| सोलोमन आइलैंड्स में एक नेटवर्क गैर-सरकारी संगठन द्वार प्रकाशित अच्छी डायरेक्टरी उपलब्ध है| इसमें संगठनों आदि के नाम, पते आदि के अलावा अन्य जानकारी भी दी गई हैं| इनमें प्रत्येक गैर-सरकारी संगठन के लक्ष्यों और कार्य का सारांश दिया गया है और समय-समय पर ताजा सूचनाएँ इसमें जोड़ी जाती है|
जैसी कि कहा जा चूका है संसाधनों की कभी एक ऐसा मुख्य कारण है जिसके चलते गैर-सरकारी संगठनों के बारे में सूचनाएँ कम उपलब्ध हो पाती हैं| और इसके अलावा एक अन्य बाधा भी है:
कोई ऐसा सर्वमान्य आधार नहीं हैं जिसके अनुसार वर्तमान सुचना के साथ ही क़ानूनी उद्देश्यों के लिए आवश्यक सुचना को प्रस्तुत किया जा सके| यह आशा की जाती है कि इस रिपोर्ट में प्रस्तुतु परिभाषा और वर्गीकरण ऐसा आधार बनाने में मददगार होंगे|
नेटवर्किंग और सहमेल-निर्माण
नेटवर्किंग और सहमेल-निर्माण के जरिये गैर-सरकारी संगठन अपने समान हितों और सरोकारों की पहचान कर सकते हैं, सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं, एक दूसरे को समर्थन व सहायता दे सकते हैं और अपने साझे लक्ष्यों को हासिल करने के लये उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उयोग कर सकते हैं| असल में नेटवर्किंग और सहमेल गैर-सरकारी संगठनों के कार्यों के प्रभाव को सुधारने की सहकारी-सहयोगी रणनीतियों की अभिव्यक्तियाँ होते हैं| अब राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्थानीय, क्षेत्रीय स्तरों पर बहुत से नेटवर्क अस्तित्व में हैं|
अन्तराष्ट्रीय नेटवर्किंग के कुछ उदाहरण है” दि वर्ल्ड इंफोर्मेशन नेटवर्क (टिवन), दि थर्ड वर्ल्ड फेमिनिस्ट नेटवर्क, डिवेलपिंग आल्टरनेटिव फार वीमन ए न्यू इरा (डान), डीसेब्ल्ड पीपुल्स इंटरनेशनल (डीपीआई), दि इंटरनेशनल डेट नेटवर्क और दि कॉमनवेल्थ एसोसिएशन फॉर लोकल एक्शन एंड इकोनॉमिक डिवेलपमेंट (कमैक्ट) राष्ट्र संघ के पर्यावरण, जनसंख्या, सामाजिक विकास और महिला शिखर सम्मेलनों से सम्बंधित अन्तर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों को समान मसलों पर अधिकाधिक रूप से एक-दूसरे से जोड़ रही है| कुछ ऐसे नेटवर्क भी हैं जो अन्तराष्ट्रीय क्षेत्रों में विभिन समूहों को एक-दूसरे से जोड़ते है, जैसे केरिबियन क्षेत्र में दि कैरिबियन पीपुल्स डिवेलपमेंट एंजेसी (कारिपेडा) और कैरिबियन नेटवर्क फॉर इंटीग्रेटीड रूरल डेवेलपमेंट, अफ्रीका में दि अफ्रीकन एनजीओज सेल्फ रिलायंस एंड डेवेलपमेंट एडवोकेसी ग्रुप और प्रशांत क्षेत्र में दि पेसिफिक आइस्लैंड्स एसोसिएशन ऑफ़ एनजीओज|
राष्ट्रीय स्तर पर नेटवर्किंग के बहुत से उदाहरण हैं : ब्रिटेन में कम्युनिटी बिजनेस मूवमेंट, भारत में दि एसोसिएशन ऑफ़ वालंटरी एजेंसीज फॉर रूरल डिवेलपमेंट (अवार्ड) सोलोमन आइलैंडस में डिवेलपमेंट सर्विस एक्सचेंज, न्यूजीलैंड में एसोसिएशन ऑफ़ एनजीओज आओतेआरोआ (अंगोआ), युगांडा में दि डेवेलपमेंट नेटवर्क ऑफ़ इंडीजिनस वालंटरी एसोसिएशन (डेनिबा), और कनाडा में दि केनाडीयन एनवायरमेंटल नेटवर्क| इसके अलावा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा और विकलांगता जैसे क्षेत्रों में भी कई नेटवर्क काम कर रहे हैं| इंटरनेट तथा इंफारमेशन सुपर हाईवे के जरिये अन्तर्राष्ट्रीय दूर संचार के क्षेत्र में जो क्रांति हुई है वह सभी स्तरों पर तथा गैर-सरकारी संगठनों के कार्य के दायरे को तथा गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्कों के प्रभाव को अत्यधिक बढ़ा रही है|
कोषदाता संगठन अब इन नेटवर्कों के महत्व को समझने लगे हैं, ठीक उसी तरह अन्तर्राष्ट्रीय एंजेसियाँ उन्हें अपने अन्तर्राष्ट्रीय मंचों में स्थान देकर उनके अस्तित्व को महत्व दे रही हैं| वे केवल उन गैर-सरकारी संगठनों तक ही सिमित नहीं हो जो परिवर्तन के लिए एडवोकेसी करते हैं, इसलिए सहमेल-निर्माण तथा नेटवर्क ऐसे उद्देश्यों के लिए प्रभावकारी सिद्ध हो रहे हैं, खास कर तब जब नेटवर्क उन्हें गैर-सरकारी संगठनों के अलावा अन्य संगठनों से भी जोड़ते हैं| कई देशों में गैर-सरकारी संगठनों में निजी क्षेत्र के बीच नेटवर्किंग तथा सहयोगपूर्ण सम्बन्धों में वृद्धि हो रही है| दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के मसले पर जो उपलब्धि हासिल की गई उसमें गैर-सरकारी संगठनों और अन्य संगठनों और अन्य संगठनों के बीच नेटवर्किंग द्वारा सम्पर्क का हाल का उदाहरण सर्वोत्तम उदाहरण है|
स्वयंसेवी संस्था की प्रबंधन-व्यवस्था
परिचय
इस झारखण्ड में हम विशेषता: एक स्वयंसेवी संस्था के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करेंगे, न की सामान्यतः प्रबंधन के सम्बन्ध में| एक स्वंयसेवी संस्था को संचालित करने के इस पहलु को समझने के लिए यह समझना उपयोगी हो सकता है कि संस्था क्या है? कैसे कार्य कार्य करते हुए यह एक ढांचे को तैयार करती है? इन ढांचों को स्वयंसेवी संस्थाओं के स्वरुप तथा लक्षणों की अपूर्व वर्णन करनी चाहिए और अनिवार्य रूप से वाणिज्यिक, औद्योगिक या सरकारी संस्थाओं से उन्हें नहीं लिया जाना चाहिए| निम्नलिखित अनुभाग में सामान्यतः एक संस्था को समझने के लिए ढांचे तथा विशेषता: एक स्वयंसेवी संस्था का विवेचन किया गया है:
संस्था क्या है?
संस्थापक सदस्य अपने अनुभव, सैद्धांतिक पृष्टभूमि तथा प्रयोजनों से संस्था के आधारभूत ढांचे का निर्माण करते हैं और प्रारंभिक “संसाधन प्रबंधकों” की सहायता से इसका प्रारभ करते हैं| ये संसाधन प्रबंधक वे स्थानीय लोग हो सकते हैं, जो संस्था के भवन के लिए स्थान उपलब्ध करा सकते हैं, संस्था के उद्देश्यों को मदद तथा बल देने वाली अन्य समरूपी संस्थाएं, कार्य प्रारभ करने के लिए थोडा-सा अनुदान देने वाली कुछेक दाता संस्थाएं आदि हो सकती हैं| ये सभी लोग संस्था को सहयोग करने में “स्टेक होल्डर” होते हैं|
मुख्यतः संस्थापक सदस्य तथा गौण रूप से संसाधन प्रबंधक संस्था के मिशन प्रमुख मूल्य तथा दृष्टिकोण (विजन) को पारिभाषित करने में मदद कते हैं| स्वयंसेवी संस्थाओं का मिशन विभिन्न तरीकों से बताया जा सकता है: जैसे- “पददलित तथा गरीब लोगों की उन्नति के लिए काम करना” “गरीबों की सामाजिक, आर्थिक उन्नति के द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाना” या “गरीबों को संगठित करना” आदि|
परन्तु इन मिशनों को सम्पादित करने लिए विभिन्न प्रकार की रणनीतियों का चयन किया जाता है| कुछ लोग गरीबों के लिए आय-उपार्जन की गतिविधियाँ शुरू करते हैं और इसी क्रम में उन्हें सही रूप से संगठित करते हैं| कुछ लोग सर्वप्रथम स्थानीय लोगों को संगठित करने के पश्चात् अगले कदम के बारे में निर्णय लेते हैं| इन रणनीतियों में भी वे सामाजिक वानिकी, कृषि विज्ञान, प्रौढ़ शिक्षा, आय बढ़ाने वाले कार्यक्रम आदि का चयन करते हैं| प्राथमिकता तौर पर इसका चयन क्षेत्र एवं लोगों की विभिन्न आवश्कताओं तथा संस्थापक सदस्यों (और कभी-कभी अन्य स्टेक होल्डरों) द्वारा स्थिति की पूर्ण रूप से समझ विकसित करने के पश्चात् किया जाता है|
एक बार गतिविधियों का चयन हो जाने के पश्चात वे विभिन्न कार्य तथा उत्तरदायित्वों में विभाजित हो जाती है|
उदहारणार्थ, एक सामाजिक वानिकी कार्यक्रम संचालित करने के लिए सम्भावित दाता (प्रायः सरकार) के मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार एक परियोजना का प्रस्ताव तैयार करना होगा| सरकारी अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करना होगा, कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए योजना बनानी होगी, नर्सरी बनाना, गतों का खनन, वृक्षारोपण, सिचाई, छंटाई, सुरक्षा आदि सभी कार्य करने होंगे, लेखा-जोखा रखना होगा, धनराशि का वितरण करना होगा और आवधिक रिपोर्ट (दाता की आवश्यकताओं के अनुसार) बनानी तथा भेजनी होगी| ये सभी कार्य स्वयंसेवी संस्था तथा स्थानीय समुदाय के सदस्यों द्वारा विभिन्न संयोजनों में उनकी क्षमताओं, अनुभव, पहल के अनुसार सम्पादित किये जाने होंगे| इस प्रकार निश्चित समयावधि में कार्य तथा क्रियाकलाप परिभाषित होते हैं|
पहले बहुत से कार्य अनौपचारिक मानकों तथा आमने-सामने की पारस्परिक क्रिया-प्रतिक्रियाओं की सहयता से समन्वित किये जाते हैं| कुछ औपचारिक नियम तथा विनियम क़ानूनी आवश्यकताओं के ऊपर निर्भर करते हुए संस्था के क्रियाकलापों तथा कार्यकर्ताओं में बढ़ोतरी होती है, कुछ अधिक मात्रा में औपचारिकता का होना आवश्यक हो जाता है| नये अंतवैयक्तिक सम्बन्ध विकसित होते हैं| नये “सम्मिलन” (कोअलिशन) तथा उप-समूह बनते हैं और धीरे-धीरे जवाबदारियों के बंटवारे के साथ कार्य भी विभाजित होने लगते हैं|
सभी संस्थाएं एक प्रदत्त पर्यावरण में विद्यमान रहती है| यह पर्यावरण अथवा परिवेश संस्था की सीमा के बाहर होते हुए भी संस्था को प्रभावित करता है| यह पर्यावरण एक व्यापक सामाजिक-आर्थिक. सांस्कृतिक तथा राजनीतिक पर्यावरण हैं जो एक प्रदत स्वयंसेवी संस्था के लिए विशिष्ट होता है| उधाहरणार्थ संसाधन, कोष एवं लोगों जैसे अवयवों को जुटाने के लिए स्वयंसेवी संस्था को देश के प्रदत पर्यावरण से सबंध रखना पड़ता है| यह पर्यावरण है सरकारी संस्थाएं तथा अन्य राष्ट्रीय एंव अन्तर्राष्ट्रीय दाताओं का, जो स्वयंसेवी संस्थाओं को अनुदान देते हैं| पर्यावरण में नियामक पहलू भी शामिल है| देश में विधि, विनियम, नियम तथा प्रक्रियाएं हैं जो संस्था पर असर डालती है और कामकाज के लिए ढांचा प्रदान करती है| जिन लोगों के लिए संस्था होती है, जिनके साथ यह काम करती है, जिन्हें यह सेवा मुहैया करती है, स्थानीय समुदाय भी इस पर्यावरण के महत्वपूर्ण पहलू हैं|
यह समझना भी बहुत आवश्यक है कि एक संस्था कहीं अलग होकर हवा में कार्य नहीं कर सकती है और पर्यावरण तथा उसके विभिन्न पहलू संस्था पर प्रभाव डालते हैं| कभी-कभी संस्था के पर्यावरण में स्वतंत्र रूप से बदलाव आते हैं और ये बदलाव विशेषतया स्वयंसेवी संस्था के स्वरुप तथा कार्य को भी प्रभावित करते हैं| एक स्वयंसेवी संस्था कैसे काम करती है, इसे सम्पूर्ण रूप से समझने के लिए पर्यावरण या बाहरी परिवेश को समझना बहुत लाभकारी सिद्ध होता है|
संस्था के कार्य तथा क्रियाकलाप
वे लोग जो उन्हें सम्पादित करते हैं ऐसी अनौपचारिक व्यवस्थाएं जो अंतवैयक्तिक सम्बन्धों को मजबूत करते हुए कार्य सम्पादन में मदद करती हैं, श्रम विभाजन, नियम तथा विनियम और पुरस्कार पद्धति, सभी मिलकर संगठनिक संस्कृति का निर्माण करती हैं| संचार व्यवस्था, सूचना प्रवाह, निर्णय की प्रक्रिया, मतभेद निपटाने की प्रक्रिया आदि प्राथमिकता रूप से उपरोक्त पहलुओं तथा कार्य, मानव संसाधन अनौपचारिक एवं अनौपचारिक व्यवस्थाओं पर निर्भर करती है| यह प्रक्रियाएँ कार्य संस्कृति तथा संगठनिक गतिशीलता की प्रतिबिम्ब होती है|
अतः अपने पारिभाषित ‘विजन” एंव दृष्टिकोण तथा प्रयोजनों के अनुरूप प्रत्येक स्वयंसेवी संस्था एक विशेष प्रचलन रणनीति प्रस्तुत करती है| इस “प्रचलन रणनीति “ से संस्था के प्राथमिकता कार्य स्पष्ट रुप से परिभाषित होते हैं| ये कार्य संगठन निर्माण, महिला मंडल” या युवा मंडलियों के आयोजन करना हो सकता है| वे जल, भूमि, तथा वन संरक्षण कार्यक्रमों को कार्यान्वित करना हो सकता है, या वे अनौपचारिक, औपचारिक तथा प्रौढ़ शिक्षा केद्रों का आयोजन करना हो सकते हैं| रणनीति के आधार पर ऐसे विभिन्न प्रकार के कार्य हो सकते हैं| ये संस्था के प्राथमिक कार्य हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि किस प्रकार अधिकाधिक वित्तीय संसाधनों तथा लोगों को काम में लाया जायेगा|
इन प्राथमिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए कोई भी संस्था निर्धारित गौण तथा सहायक कार्यों को पूरा करने हेतु बाध्य होती है| उदाहरणार्थ संगठन निर्माण कार्यक्रम को कार्यान्वित करने हेतु किसी संस्था को लेखा-जोखा रखना होगा, एक प्रौढ़ शिक्षा केंद्र चलने के लिए संस्था को प्रशिक्षकों तथा पर्यवेक्षकों को पहचानना, भर्ती करना, प्रशिक्षित करना होगा और उनके छुट्टी रिकोर्डों, भुगतान सूचियों तथा वाहन भक्तों का ब्यौरा रखना होगा|
संक्षेप में कहा जाए कि एक प्रकार से प्रशासनिक कार्य सम्पादित करने होंगे| इन गौण (सेकेडरी) कार्यों का सम्पन्न होना प्रमुख एवं आवश्यक है ताकि संस्था के प्राथमिक कार्य प्रभावी ढंग से सम्पन्न किये जा सकें| अतः गौण कार्यों का अपने आप में कोई खास मूल्य नहीं हैं| लेकिन ये प्राथमिक कार्यों के निष्पादन को काफी सरल बनाते हैं| अतः अपने उद्देश्यों एंव अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कोई संस्था प्रभावी रूप से अपने प्राथमिक कार्य सम्पन्न करना चाहती है, तो उसके लिए यह भी आवश्यक हो जाता है कि वह अपने गौण कार्यों को सुचारू रूप से सम्पन्न करने के लिए आवश्यक उपाय भी ढूंढ निकाले|
किसी स्वयंसेवी संस्था को स्थापित करने की प्रक्रिया में व्यापक मिशन तथा दृष्टिकोण, बाद में निश्चित उद्देश्यों में परिवर्तित होते हैं| इनमें से कुछ उद्देश्यों को संस्था के औपचारिक दस्तावेजों, जैसे स्मृतिपत्र आदि में लिखित रूप में दर्शाया जाता है| कुछ उद्देश्य कार्य के दौरान उभर आते हैं तथा कुछ निश्चित समयावधि में परिवर्तित भी होते हैं| इसलिए कुछ वर्षों बाद संस्था पुराने उद्देश्यों पर कार्य करने के अलावा कुछ नये उद्देश्यों पर भी कार्य कर सकती है| बहरलाल, जिन संसाधनों के लिए उद्देश्य प्रतिबद्ध है, दर्शाए गए उद्देश्यों से अलग हो सकते हैं| उसी प्रकार ऐसा भी हो सकता है कि संस्था से बाद में जुड़ने वाले साथियों का उद्देश्यों के प्रति नजरिया, संस्था के मूल संस्थापक सदस्यों के नजरिये से बिल्कुल समान न हो| अतः संस्था में कार्यरत विभिन्न कार्यकर्त्ता भी संस्था के मूल संस्थापक सदस्यों के विभिन्न नजरिये से देखते, समझते होंगे| वास्तव में बाहरी व्यक्ति भी संस्थापक सदस्यों के उद्देश्यों के प्रति नजरिये से अलग तरीके का नजरिया रखते हैं| अतः इस बाते को जानना महत्वपूर्ण है कि किसी संस्था के दर्शाये गए “वास्तविक” तथा अनुभव किये गए उद्देश्य आवश्यकता के तौर पर एक जैसे नहीं हो सकते हैं|
कार्यगत मानदंड
परिचय
स्वैच्छिक विकास संगठन के कार्यों और कार्यविधियों में वे मूल्य प्रतिबिम्बित होने चाहिए जिन्हें ले कर संगठन काम कर रहा है| देश के वर्तमान कानूनी मानदंडों के अतर्गत पंजीकृत होने के अलावा स्वैच्छिक संगठन जवाबदेही और पारदर्शिता द्वारा सांगठनिक सत्यनिष्ठा को आगे बढ़ाएंगे |
सांगठनिक सत्यनिष्ठा
ऐसे स्वैच्छिक विकास संगठनों के विकास और स्थायित्व के लिए, जो अपने दायरे ढाँचे और सिद्धांतों में सार्वजनिक (निजी नहीं) हों, निम्नलिखित कार्य आवश्यक है:
क) संगठन को उन पर लागू होने वाले और कानूनों का पालन करना चाहिए|
ख) क्योंकि स्वैच्छिक क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों (विशेषकर निगमित क्षेत्र और सरकार) के बीच कार्य के लिए मिलने वाले लाभों, वेतनों, आदि में थोड़ी ही समानता है, अतः कार्यदल के सदस्यों को मुख्यतः स्वैच्छिकवाद के मूल्यों और सामाजिक प्रतिबद्धता से प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए|
ग) संगठन को एक स्पष्ट लिखित नीति तैयार करनी चाहिए जिसमें मतभेद होने की स्थिति में सामंजस्यपूर्ण निर्णय की व्यवस्था हो|
घ) संगठन की रोजगार नीति स्पष्ट, सहायक, समान अवसर प्रदान करने वाली और गैर-भेदभावकारी होनी चाहिए|
ङ) संगठन को वार्षिक कार्य सम्बन्धित विवरण तथा वित्तीय रिपोर्ट तथा साथ ही विभिन्न गतिविधियों पर रिपोर्ट, तथा समीक्षाओं और मूल्यांकनों के प्रभाव पर रिपोर्ट तैयार कर उपलब्ध करानी चाहिए
जवाबदेही
• संगठन का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए लाभार्थी समुदाय के प्रति जवाबदेही पर साथ ही साथ संगठन की सरकार और निधिदाताओं के प्रति भी जवाबदेही होनी चाहिए|
• जवाबदेही में नियमित, व्यवस्थित और खुले मूल्यांकन व मानीटरिंग के माध्यम से काफी सुधार लाया जा सकता है जिससे संगठन के सिंद्धांतों और मूल्यों, जनता और समुदाय के प्रति उसकी वचनबद्धता, बदलाव लाने और प्रतिक्रिया करने की उसकी क्षमता तथा उसकी लागत-प्रभाविकता का आकलन और सुदृढ़ीकरण किया जा सके|
• इस मूल्यांकन और मानीटरिंग में निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए
क) जहाँ भी संभव हो बाहरी और स्वतंत्र पक्षों से जानकारी मांगी जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संगठन ईमानदार है, वस्तुनिष्ठ है, अपनी स्वार्थपूर्ति में नहीं जुटा है और समुचित रूप से आलोचनात्मक है|
ख) इस तरह की मूल्यांकन और मानीटरिंग का कार्य सरल और सरसरा नहीं होना चाहिए जैसे कि कई बार वित्तीय आडिटिंग हो जाती है, बल्कि इसमें सामाजिक-आर्थिक कारकों पर विचार किया जाना चाहिए और साथ अभीष्ट (इंटेन्डेड) और अनभीष्ट (अ (अनइंटेन्डेड) प्रभावों की छानबीन की जानी चाहिए (इसमें सामाजिक आडिट तकनीकें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं)
ग) ऐसे सांगठनिक तौर-तरीके विकसित करना जिनसे संगठन अपनी प्रभावकारिता और विश्वसनीयता स्थापित कर सके और निधिदाताओ तथा सरकारों द्वारा अपनाये गए अतिरिक्त नियंत्रण का प्रतिरोध कर सके|
पारदर्शिता
संगठन को कार्य के उद्देश्य में निम्न प्रकार से पारदर्शिता अपनानी चाहिए:
क) यह स्पष्ट प्रलेखित करना चाहिए कि वे कौन है, वे के करते हैं और किस प्रकार करते हैं|
ख) वित्तीय मानदंडों और कर्मचारी व स्वैच्छिक कार्यकर्त्ता सम्बन्धी नीति का स्पष्ट तौर पर पालन करना चाहिए और उसका प्रलेखीकरण करना चाहिए|
ग) वितीय विवरण के साथ अपने कार्यक्षेत्रों और सम्बद्ध संगठनों के बारे में वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए और अन्य को उपलब्ध करानी चाहिए|
वित्तीय प्रबंधन
• संगठन के वित्तीय प्रबंधन के तौर-तरीके उच्च स्तर के होने चाहिए जो उसकी ईमानदारी और पारदर्शिता को प्रकट करें|
• संगठन को अपने निधिदाताओं के साथ वार्ताएं चलाते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोष सम्बन्धी समझौतों की शर्तें और क्रियाविधियों तथा रिपोर्टिंग की समय तालिका पारस्परिक रूप से स्वीकार्य हो|
• संगठन को केवल वे अनुदान और अनुबंध ही स्वीकार करने चाहिये उसकी दृष्टि और लक्ष्य के अनुरूप हों|
• संगठन को वित्तीय मानीटरिंग और रिपोर्टिंग के लिए पर्याप्त और समुचित क्रियाविधियों की व्यवस्था करनी चाहिए|
• कोष प्राप्त करने के सबंध में संगठन की एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए जो उसकी संस्थागत प्रगति तथा टिकाऊपन को सुनिश्चित करे|
आनंद श्री कृष्णन
निर्देशक: आस्क फाउंडेशन
संस्थापक: हुनर ख़ोज अभियान
संयोजक: प्रतिपालन
समन्वयक: सामाजिक मंच
फ़ोन न.: 7631230061
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